पितृ पक्ष 2024: तृतीया श्राद्ध का महत्व और तर्पण विधि

पितृ पक्ष हिंदू धर्म में पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने का विशेष समय है। इस दौरान श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण के द्वारा पितरों को शांति और मोक्ष प्रदान करने का कार्य किया जाता है। तृतीया श्राद्ध, विशेष रूप से उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु तृतीया तिथि पर हुई हो। आइए, तृतीया श्राद्ध के महत्व, मुहूर्त और विधि के बारे में विस्तार से जानें।

तृतीया श्राद्ध का महत्व

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि तृतीया श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। इस दिन किए गए श्राद्ध से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर अपने लोक में वापस जाते हैं। तृतीया श्राद्ध करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और संतानों की उन्नति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि तृतीया तिथि पर जिन पूर्वजों का देहांत हुआ है, उन्हें तृतीया श्राद्ध विशेष फल देता है।

तृतीया श्राद्ध का मुहूर्त

पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण कार्य का समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। तृतीया श्राद्ध के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:

  • कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:50 से दोपहर 12:39 तक
  • रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:39 से दोपहर 1:27 तक
  • अपराह्न काल: दोपहर 1:27 से 3:54 तक

इन मुहूर्तों के दौरान तर्पण, पिंडदान और अन्य श्राद्ध कर्म करना शुभ माना जाता है। इस समय के भीतर किए गए कार्यों से पितरों को अधिक संतोष मिलता है।

तृतीया श्राद्ध की विधि

श्राद्ध विधि को सही तरीके से करना अत्यंत आवश्यक होता है ताकि पितरों को शांति प्राप्त हो सके। तृतीया श्राद्ध की प्रक्रिया इस प्रकार है:

1. नित्य कर्म और स्नान

श्राद्ध करने से पहले श्राद्धकर्ता को अपने नित्य कर्मों को पूरा करके पवित्र स्नान करना चाहिए। स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद, श्राद्ध की शुरुआत की जाती है।

2. पिंडदान और तर्पण

श्राद्धकर्ता गंगाजल, जौ, तुलसी और शहद मिश्रित जल से पितरों को तर्पण करें। पिंडदान के रूप में चावल के गोले (पिंड) बनाकर उन्हें पितरों के नाम से अर्पित करें। यह क्रिया पितरों को तृप्ति और संतोष प्रदान करती है।

3. दीप प्रज्वलन और आहार दान

तर्पण और पिंडदान के बाद पितरों के नाम से एक दीपक प्रज्वलित करें। इसके साथ ही, गाय, कौवा, चींटी आदि के लिए भोजन का एक अंश निकालें और उन्हें अर्पित करें। यह प्रतीकात्मक आहार पितरों तक पहुँचाने का माध्यम माना जाता है।

4. ब्राह्मण भोजन और दान

श्राद्ध कर्म के बाद तीन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें। ब्राह्मणों को प्रसन्न करके पितरों को भी संतोष प्राप्त होता है। इसके साथ ही, किसी गरीब व्यक्ति की सहायता करना भी श्राद्ध के दिन विशेष पुण्य फलदायी होता है।

तृतीया श्राद्ध से प्राप्त होने वाले लाभ

शास्त्रों के अनुसार, तृतीया श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध करने वाले परिवार में सुख-समृद्धि, पारिवारिक सामंजस्य, उत्तम संतान की प्राप्ति और नौकरी या व्यापार में तरक्की प्राप्त होती है। यह समय परिवार की उन्नति और पितरों की कृपा प्राप्त करने का विशेष अवसर होता है।

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