तिरुपति लड्डू विवाद: YSRCP के नेताओं का 'प्रायश्चित' अनुष्ठान, नायडू के आरोपों पर बढ़ता सियासी घमासान

आंध्र प्रदेश की राजनीति में तिरुपति के पवित्र लड्डू को लेकर उठे विवाद ने राज्य भर में एक नई बहस छेड़ दी है। मुख्यमंत्री नारा चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया था कि तिरुपति लड्डू, जो भगवान वेंकटेश्वर के भक्तों के लिए पवित्र प्रसाद है, उसकी शुद्धता से समझौता किया गया। नायडू का कहना है कि YSRCP सरकार के कार्यकाल के दौरान लड्डू बनाने में घटिया सामग्री और पशु वसा (animal fat) का इस्तेमाल हुआ था। इस आरोप के बाद धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची और एक बड़े विवाद ने जन्म लिया।



इस विवाद को YSRCP ने न केवल नायडू के खिलाफ एक सियासी साजिश करार दिया, बल्कि पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पूरे राज्य में 'प्रायश्चित' अनुष्ठान भी किए। YSRCP प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने इन आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा कि लड्डू में कोई भी अशुद्ध सामग्री का इस्तेमाल नहीं हुआ था। रेड्डी ने कहा कि जिस घी के नमूनों को लेकर विवाद हुआ, वे NDA सरकार के कार्यकाल के दौरान लिए गए थे, न कि YSRCP सरकार के वक्त।

तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के पूर्व अध्यक्ष और YSRCP के वरिष्ठ नेता बी करुणाकर रेड्डी ने तातैया गुंटा स्थित गंगम्मा मंदिर में विशेष पूजा की और नायडू के इस कथित 'पाप' का प्रायश्चित किया। इसके साथ ही, पूर्व सिंचाई मंत्री अंबाती रामबाबू ने गुंटूर में वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में प्रार्थना की। राज्य भर में YSRCP के कार्यकर्ताओं ने इसी प्रकार से धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए, ताकि नायडू द्वारा लगाए गए आरोपों से भगवान के प्रसाद की पवित्रता को बचाया जा सके।

यह विवाद न केवल धार्मिक भावनाओं तक सीमित है, बल्कि इसने राजनीतिक हलकों में भी बड़ी हलचल मचा दी है। YSRCP नेताओं ने इसे नायडू की ओर से फैलाई गई साजिश बताया और कहा कि नायडू ने भगवान को राजनीति में घसीट लिया। YSRCP नेता एम शर्मिला रेड्डी ने एक स्थानीय न्यूज़ चैनल से बातचीत में कहा, "नायडू ने भगवान को भी राजनीति में लाने की कोशिश की। वे एक ऐसी घटना का झूठा विवाद खड़ा कर रहे हैं, जो कभी हुई ही नहीं। जब ये घी के टैंकर आए थे, तब मुख्यमंत्री कौन थे? जवाब नायडू को देना चाहिए।"

तिरुपति लड्डू, जो भगवान वेंकटेश्वर का पवित्र प्रसाद है, करोड़ों हिंदुओं के लिए आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इस प्रसाद की शुद्धता पर सवाल उठाने का मतलब उन भक्तों की आस्था को चोट पहुंचाना है, जो इसे दिव्यता का प्रतीक मानते हैं। तिरुपति लड्डू का महत्व सिर्फ एक मिठाई के रूप में नहीं, बल्कि यह एक ऐसी धार्मिक भावना का हिस्सा है, जिसे देशभर में करोड़ों लोग संजोए हुए हैं। इस पर किसी भी प्रकार का राजनीतिक आरोप लगना न केवल राज्य बल्कि पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकता है।

इस पूरे विवाद में एक सवाल यह भी उठता है कि क्या धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए करना उचित है? नायडू के आरोपों के पीछे की मंशा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या यह वाकई लड्डू की शुद्धता से जुड़ा मामला है, या फिर इसके पीछे कोई सियासी खेल है?

यही कारण है कि YSRCP इस विवाद को न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक साजिश के रूप में देख रही है। YSRCP के समर्थकों ने पूरे राज्य में विशेष पूजा-अर्चना कर इस पवित्र प्रसाद की पवित्रता की रक्षा के लिए अनुष्ठान किए। उनकी कोशिश है कि नायडू द्वारा फैलाए गए इन आरोपों के चलते भगवान के प्रसाद पर उठे सवालों को मिटाया जा सके और साथ ही धार्मिक भावनाओं की रक्षा की जा सके।

तिरुपति लड्डू के इस विवाद ने आंध्र प्रदेश की राजनीति को एक नई दिशा में मोड़ दिया है। एक तरफ नायडू अपने आरोपों के साथ खड़े हैं, तो दूसरी तरफ YSRCP इसे धार्मिक आस्था और पवित्रता पर हमला बताते हुए नायडू को कटघरे में खड़ा कर रही है। ऐसे में आने वाले समय में इस विवाद का क्या परिणाम निकलता है, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या नायडू अपने आरोपों पर टिके रहेंगे, या फिर YSRCP की धार्मिक और राजनीतिक रणनीति इस विवाद का समाधान निकाल पाएगी?

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