कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए बीते 10 वर्षों में किसानों के साथ गहरे अन्याय और धोखे का आरोप लगाया है। कांग्रेस का कहना है कि किसानों की स्थिति में सुधार के तमाम वादों के बावजूद, मोदी सरकार ने उन्हें कई मोर्चों पर असफलताओं और संकटों का सामना करने पर मजबूर किया है। यह आरोप उस समय सामने आया है जब देशभर में किसान आंदोलनों की आवाजें एक बार फिर तेज हो रही हैं, और किसानों के हक की लड़ाई राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी हुई है।
कृषि कानूनों पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। साल 2020 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जिस तरह से देशभर के किसान एकजुट हुए, उसने यह साफ कर दिया कि सरकार और किसानों के बीच गहरी खाई है। किसान संगठन और कांग्रेस यह आरोप लगाते रहे हैं कि ये कानून बड़े कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए गए थे, जबकि किसानों के हितों को दरकिनार कर दिया गया था।
कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा किया था, लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है। किसानों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। महंगाई, कर्ज और खेती से जुड़ी समस्याओं ने उन्हें कगार पर धकेल दिया है। खेती की लागत लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन फसलों की कीमतों में कोई बड़ा इजाफा नहीं हुआ है, जिससे किसानों की आमदनी कम हो रही है।
कृषि कानून और MSP पर सवाल
कृषि कानूनों के अलावा, कांग्रेस ने सरकार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के मुद्दे पर भी सवाल उठाए हैं। कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने MSP का सही से पालन नहीं किया, जिसके चलते किसानों को अपनी फसलों के उचित दाम नहीं मिल पाए। कई किसानों को बाजार में अपनी उपज बहुत कम कीमतों पर बेचनी पड़ी, जबकि MSP का दावा कुछ और ही था। इससे किसानों में असंतोष और आक्रोश बढ़ा है।
कांग्रेस का आरोप है कि सरकार केवल अपने प्रचार और बड़ी घोषणाओं पर ध्यान दे रही है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही है। गांवों में रहने वाले किसान आज भी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। फसलों का सही दाम न मिल पाना, कर्ज का बढ़ता बोझ, और मौसम की मार से किसानों की स्थिति बदतर हो गई है। इन सबके बावजूद, सरकार ने इन समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया।
किसान आंदोलन और सरकार की प्रतिक्रिया
कृषि कानूनों के विरोध में हुए किसान आंदोलन ने न सिर्फ देशभर में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियां बटोरीं। लाखों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डालकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला। आंदोलन के दौरान कई किसानों की मौत हुई, लेकिन सरकार ने आंदोलन को सख्ती से दबाने की कोशिश की। पुलिस बल का इस्तेमाल, इंटरनेट सेवाओं को बंद करना, और आंदोलन को बदनाम करने की कोशिशें भी इस आंदोलन की खास बातें रहीं।
कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने किसानों की मांगों को दरकिनार कर दिया और उनके आंदोलन को तोड़ने की कोशिशें कीं। लेकिन किसानों के दृढ़ संकल्प और एकजुटता के आगे सरकार को आखिरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा। यह सरकार के लिए एक बड़ी असफलता थी, जबकि किसानों के लिए यह एक महत्वपूर्ण जीत थी।
क्या किसानों की समस्याएं अब भी बाकी हैं?
हालांकि कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद किसानों ने अपने आंदोलन को समाप्त कर दिया, लेकिन क्या किसानों की समस्याएं खत्म हो गई हैं? कांग्रेस का कहना है कि किसानों के लिए यह सिर्फ एक लड़ाई थी, और असली समस्याएं अब भी बाकी हैं। फसलों के दाम, सिंचाई की समस्याएं, कर्ज का बोझ, और मौसम की अनिश्चितता जैसी समस्याएं आज भी किसानों के सामने हैं।
सरकार ने कई योजनाएं और घोषणाएं की हैं, जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, लेकिन किसानों को इसका सही लाभ नहीं मिल पा रहा है। जमीन पर हालात जस के तस बने हुए हैं। कागजों पर योजनाएं और सब्सिडी तो दिखती हैं, लेकिन वास्तविकता में किसानों को उन तक पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
आगे का रास्ता
कांग्रेस का कहना है कि अगर सरकार किसानों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लेती है, तो यह देश की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, और किसानों की स्थिति में सुधार लाए बिना देश की समग्र प्रगति संभव नहीं है। कांग्रेस ने यह भी मांग की है कि किसानों के हित में ठोस कदम उठाए जाएं, जिससे उनकी आमदनी में इजाफा हो और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बनाया जा सके।
किसानों की इस लड़ाई में कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंकने का फैसला किया है। पार्टी का कहना है कि वह किसानों के हक की लड़ाई को हर मंच पर उठाएगी और जब तक किसानों को उनका हक नहीं मिल जाता, तब तक उनका संघर्ष जारी रहेगा।